चरणों में
चरणों में


इतनी सी अरज है "नीरज" की, मेरे बजरंगी के प्यारे चरणों में।
काया रहे कहीं दुनिया में, मगर यह मन रहे सदा तुम्हारे चरणों में।।
प्रभु दर्शन को जाने वाले, इतना "बजरंगी" से कह देना।
एक दीन हीन ने भेजा है, शत-शत नमन तुम्हारे चरणों में।।
हम पापी हैं, लोभी भी हैं, फिर भी तुमसे है आस लगी।
श्रद्धा सुमन लिए बैठा हूँ, करुणा के सहारे चरणों में।।
जिसने भी तुम को अपनाया, उसको तुमने भी भरमाया।
ng>अनुभूति आनंद की होती है, कष्टों के मारे चरणों में।। दुनिया के सारे रिश्ते नाते, स्वार्थ वन हैं मुझे को लुभाते। निस्वार्थ, निश्चल तुम्हारी भक्ति, करता रहूँ तुम्हारे चरणों में।। अब लाज मेरी रखना बजरंग वली, दुनिया न हँसे, माया न ठगे। हो तुम ही मेरे आराध्य गुरु, नित्य सेवा करुँ तुम्हारे चरणों में।। इतनी सी कृपा की भीख हमें, दया करके देना स्वामी। जब प्राण तन से जुदा हों तो, हो ध्यान तुम्हारे चरणों में।।