जिया मां
जिया मां
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जिधर देखूं माँ तुमको,
तुम ही नजर आ जाती,
जीवन तुम बिन सूना लगता,
जितना भी भजन करूं दिन-राती ।
मां तुम हो ममता की मूरत,
प्रेम भरपूर सब पर बरसाती,
जो भी आता दर्शन करने को,
वात्सल्य रूप ही सदा दिखलाती ।
समझ न पाया मां की आदत को,
बिन मांगे ही सब कुछ दे जातीं,
मैं तो ठहरा जन्म का अंधा,
फिर भी स्वप्न में दर्शन दे जातीं ।
मां के चरणों में चार धाम है,
सतसंगत यही है बतलाती,
जिन पर कृपा मां की हो जाती,
दिव्य-दृष्टि उसकी खुल जाती ।
क्यों भटक रहा मंदिर में जाकर,
प्रभु-दर्शन में देर है लगती,
हर नारी में जब माँ को देखेगा,
नीरज,उस दिन होगी तेरी सच्ची भक्ति ।