रिश्ते।
रिश्ते।
स्वार्थ की जब बात करो तो,
स्वार्थी बना सकल संसार।
बिन स्वार्थ रिश्ते नहीं बनते,
न बनते यह घर-परिवार।
किसी को स्वार्थ संतान प्राप्ति का,
किसी को धन और संसार।
पिता-पुत्र की बात छोड़ो, छोड़ा न भगवान,
आत्मचाह की कामना हेतु भरते हैं भंडार।
रिश्ते कभी मतलबी नहीं होते,
मतलबी है बनते अपने संस्कार।
अगर परवरिश में खोट न होता,
न करता कभी चीख-पुकार।
अगर चाहते हर रिश्ते को निभाना,
"नीरज" सबसे पहले तू अपने कर्म सुधार।