मेरा परिचय।
मेरा परिचय।
लिखते रहना ही मेरी पहचान है,
अंतर्मन से निकली यह जवान है,
ह्रदय जो कहता वही लिखता हूं,
सुकून भरे पल में ही जीता हूं।
लिखता गया कारवां बनता गया,
लिखा जो उनको सजाता गया,
सुनाया जब तो कुछ तारीफ़ मिली,
फिर तो मानो कलम को कलम को न राहत मिली।
पता नहीं चला कब क्या&n
bsp;से क्या हो गया ,
एक शिक्षक भी न जाने कब लेखक हो गया,
जरूरत थी कि ये उद्गार पढ़ें सभी,
साहित्य सृजन मंच ने दिया मौका तभी।
मन की हसरत न जाने कैसे पूरी हुई,
लिखे जो भजन व सुंदर पुस्तक हुई,
पहुंच रहा भजन अमृत अब जन-जन में,
दे रही खुद"परिचय" मेरा अंतर्मन में।