रात
रात
रात सुनसान सी अजनबी रास्तों पर
बेजुबान सी बड़ रही थी ...
कहीं दूर जलता चिराग
आँखे कंपकंपा उठी ....
जिंदगी के अंधेरों में खुशी ढूँढती
उजाले के खौफ से सहमी सहमी सी रात....
नासमझ वो मुर्ख
ना जानती ना जान ना चाहती....
अंधेरों से भी क्या कभी
मुस्कान खिला करती है....
वीरानी हवायें और वीराने ज़ज्बात
इसके इलावा और मिलता है क्या.....
रात टूटे बिखरे ख्वाब .....I