मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट
नज़ारा बयां नहीं कर सकती ....
इंसान देह बन गया ...
देह कंधो पर सवार हुई....
डुबकी लगी ....
अंतिम डुबकी ....
गंगा स्नान हुआ...
और फिर शैय्या सज गई....
लकड़ी की...
तपती उस अग्नि की...............
ठंडी पड़ी राख पर ....
वहां देखो श्वान दुबक पड़े...
कुछ नोच रहे,कुछ चबा रहे ....
काया , जो अग्नि में ना जल पाई थी
उस मास को उस लाश के हड्डी मांस को ।।।
जय मैया गंगा,
जय गंगा मैया,
जल रही थी लाशें एक तरफ़
एक तरफ हुजूम उमड़ा था,
कहीं आरती का सपर्श था,
कहीं अस्ति विसर्जन था,
थीं आंखें नम कहीं
कहीं अभिभूत मुखड़ा था।