चलती मैं
चलती मैं
ख़्वाब सा ये पल
इंसान की भटकना
दिखे हर जगह
फितूर ये हर पल
रास्तों के मुसाफ़िर
चल पड़े आंखें मूंद
अड़चने ज़िंदा लाश
भटकती आत्मिकता
ढूंढता सुकून
एक आस दिखी
एक प्यास जगी
रोशनी सी जगमग
चलती सी जलती सी
चलती मैं चलती मैं
बस चलती मैं....
कभी नमी में
कभी गमी में
कभी हँसी में
बस चलती मैं ।।।
