बातें
बातें
बातें तेरे मन की,
मेरे मन की
इसकी -उसकी
बातें कभी चाय पर, कभी कॉफी पर
तो कभी फोन पर
कभी खुद से, तो कभी किताबों से
बातें कभी क, ख, ग जैसी
सीधी - साधी आसान सी,
तो कभी गहरी रात सी
बातें कभी काम की, कभी बेकार की
कभी प्यार की, कभी तकरार की
बातें जो कभी दिमाग से यूँ ही निकल जाती हैं,
और कभी ताउम्र के लिए दिल के एक कोने में
घर बना लेती हैं
बातें कभी चुटकियों म
ें मुट्ठी से फिसलती रेत सी
और कभी खत्म ना होने वाली
सपनों कि लंबी उड़ान सी
बातें कभी चाशनी सी मीठी,
तो कभी कड़वी नीम सी
बातें कभी झुलसते हुए मन पर
रुई के फाहे सी,
और कभी घाव करने वाली सुई की चुभन सी
पर ये बातें चाहे कैसी भी हो,
जीने का जरिया हैं यही
और एक दूसरे को समझने का भी
तो चलो ना, कुछ देर बैठकर बातें करते हैं
ढेर सारी बातें
कुछ तेरे मन की, कुछ मेरे मन की।