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shruti chowdhary

Abstract

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shruti chowdhary

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आँखें

आँखें

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हर सुबह ये खुलती आँखें 

निरंतर करती कुछ काम

सूर्य देव को अर्पित करती 

जल छलकाती लिए 

आँखों में तेज भरा विश्वास 

हर शाम ये आँखें देखती इसे बंद 

कुछ काम्याबी के कुछ गए बेकार 

कमाया है रात का आराम

सपना आया आधी रात 

छवि पलट गयी जिंदगी 

तुमसे हर एक मुलाकात 

हकीकत में चुपके से झांकती 

बदल गया एहसास 

थक गयी ये आँखें 

कल तक चमकता जोश था 

आज धुंदली उदास दिखती वो 

नए ज़माने के निराले रंग

क्या झेल पायेगी ये कमजोर आँखें 

आँखों में दुखों का सैलाब चकराता 

गम की चुभन से खुजलाता रहता 

आँखों का काजल मिट गया 

तुमने तो जैसे मुँह मोड़ लिया 

आँखें खोयी खोयी सी रहती है 

जागते हुए भी सोई सी रहती है 

इनमे झलकता दर्द और आंसू 

मुसकुराना तो जैसे भूल हि गयी 

सोचते सोचते चैन से बंद हो गयी आँखें 

नए सुबह के इंतज़ार में 

एक लम्बा सफर तय करके 

सूर्य की लालिमा को नमन करते हुए 

अब तसव्वुर ही कुछ और है 

पलक झपकाती ये आँखें नमकीन 

जिंदगी हो गयी और भी हसीन 

मत देखो इन्हे बोझ की नज़र से

जी लो आज के पलों को 

मुसकुराती हुई नज़र से! 



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