STORYMIRROR

Richa Aggarwal

Romance Tragedy Classics

4  

Richa Aggarwal

Romance Tragedy Classics

विरह का दर्द

विरह का दर्द

1 min
38

जानती हूं मै कन्हैया,

कि तुमको तो बस उस कर्मभूमि की पड़ी थी

जिस कारण उद्धव संग हो लिए तुम

क्षण भर में सारे रिश्ते-नाते तोड़कर।


ना रोक पाई तुमको यशोदा मां की ममता,

ना ही गोकुल की वो गलियां, 

जहां घर-घर जाकर खाया तुमने

माखन-मिश्री चुराकर।


ना पल भर के लिए भी तुम्हारी

स्मृतियों में ये ख्याल आया

कि बन पत्थर सी मूरत मैं भी,

बरसों उस यमुना के तट पर

जलती रही तुम्हारे विरह की अग्नि में पल-पल।


हां ये सही है की तुम तो ठहरे सृष्टि के पालक

नहीं कठिन था तुम्हारे लिए कुछ भी

पर हे निष्ठुर कन्हैया तुम भी तो ये जानते थे ना 

कि नहीं थी चाहत मुझे 


कि बन रुक्मणि संग सदा तुम्हारे विराजूँ मैं

ये राधा तो थी बस तुम्हारी दर्श दीवानी

फिर क्यूं ना आए तुम कभी वापिस लौटकर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance