STORYMIRROR

Richa Aggarwal

Abstract Tragedy

4  

Richa Aggarwal

Abstract Tragedy

माफ़ी

माफ़ी

2 mins
278

ना भूल पाना आसान है और ना माफ़ कर पाना

कुछ लोग, कुछ रिश्ते ऐसे ही जख्म दे जाते हैं

जो बाहर से बेशक नज़र ना आएं

पर ताउम्र नासूर बन कर चुभते रहते हैं


जिनका भर पाना उतना ही नामुमकिन लगता है,

जितना किसी लुटी हुई या झुलसी हुई

स्त्री के होठों की मुस्कुराहट, उसका खोया हुआ आत्मविश्वास

और आत्मसम्मान उसे वापिस लौटा पाना


और खासतौर पर तब, जब दर्द देने वाले के माथे पर

शिकन या दिल में अपने किए गुनाहों का मलाल तक ना हो।


अब आप में से कुछ लोग कहेंगे कि भई ऐसा भी क्या हो गया

थोड़ा सब्र रखो, वक़्त सब ज़ख्मों को भर देता है।


सही है, पर क्या आपने कभी वो दीवार ध्यान से देखी है

जिसमें एक बार कील ठोकने के बाद अगर निकाल भी ली जाए,

तो भी वो कील उस दीवार में एक गड्ढा या छेद कर देती है।


ठीक उसी तरह चोट खाया मन भी कोई 

उधड़ा - फटा कपड़ा तो नहीं

जिसमें टांके लगाकर, रफू करके दुबारा इस्तेमाल किया जा सके

टांकों की गांठें तो उनमें भी रह ही जाती हैं ना..

उनमें वो पहले सी बात कहां।


मैंने कई लोगों को समझाते हुए सुना और देखा है

कि किसी को माफ़ कर देना बहुत सुकून देता है खुद को

और ये ज़रूरी भी है

आखिर हम भी तो यही चाहते हैं भगवान से - 

अपने गुनाहों कि माफ़ी


पर मैं उन सबसे आग्रहपूर्वक ये जानना चाहती हूं

कि हम इंसान कब से भगवान के बराबर हो गए?


और फिर अगर माफ़ करना इतना ही आसान और ज़रूरी है

तो क्यों नहीं माफ़ किया भगवान राम ने रावण को,

कृष्ण ने शिशुपाल को और द्रौपदी ने कौरवों को ?

जो कर देते तो शायद इतिहास में

राम-रावण और कौरव-पांडव युद्ध ना होता।


पता है, नहीं होता आसान कभी - कभी किसी को माफ़ करना

और अगर कर भी दिया जाए तो भी उस दर्द को भूल पाना

कभी तो उन आंसुओं के पीछे की पीड़ा को भी समझ कर देखिए ना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract