काश मुझको पता होता
काश मुझको पता होता
काश मुझको पता होता...
कि कितना आसान है
बचपन वाली कच्ची उम्र में
रेत के घर बनाना,
नंगे पांव मिट्टी में खेलना
बारिश में भीग जाना,
अपनी जायज़ नाजायज फरमाइशों को
पूरा करवाने के लिए
झूठ मूठ का रोना
और फिर डांट खाकर
चुपचाप मां की ही गोद में सिर रखकर सो जाना
पर बहुत मुश्किल है
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही
ज़िन्दगी के गणित को समझ पाना
क्या छूटा, क्या पाया
कौन रूठा, किसको मनाया
और अपनों से सजी अंजान महफ़िल में
दिल में सौ गमों को छिपा
आंखों से मुस्कुराना।
काश मुझको पता होता
कि कितना आसान है
कॉलेज के गलियारों में नए दोस्त बनाना
हाथों में हाथ डालकर घूमना फिरना,
मौज मनाना
पर बहुत मुश्किल है
वो खेल खिलौने, संगी साथी भूल
पुराने रिश्तों और यादों की पोटली लिए
खुद का आंगन छोड़, एक लड़की का
किसी दूजे के घर को महकाना।
काश मुझको पता होता
कि कितना आसान है
सात फेरों के बंधन में बंध
किसी की दुल्हन बन जाना
पर बहुत मुश्किल है
उस रिश्ते में बसे प्रेम और अधिकार को
पूरी तरह समझ पाना।
काश मुझको पता होता
कि फिर भी आसान है
और खूबसूरत भी
अपने अंदर से एक नन्ही कली को इस दुनिया में ला पाना,
मां बन पाना
पर बहुत मुश्किल है
उस नन्ही जान को पालने में पीछे छूटे
खुद कुछ बनने के अधूरे ख्वाब को भूल पाना।
काश मुझको ये सब वक़्त रहते पता होता
तो... तो ज़िन्दगी जीने का मजा और फलसफा ही कुछ और होता,
क्योंकि जो चुन लेते हम
इनमें से कुछ आसान राहें
तो शायद आंसुओं भरा वो मंजर ना होता
और कितना आसान हो जाता
रिश्तों - नातों, सपनों और उम्मीदों से
भरी इस जिंदगी को
बगैर मन पर कोई बोझ लिए
छोड़ कर चले जाना।
काश कि मुझको ये सब वक़्त रहते पता होता।
