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Richa Aggarwal

Abstract Inspirational

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Richa Aggarwal

Abstract Inspirational

मेरी मां - मेरा स्वाभिमान

मेरी मां - मेरा स्वाभिमान

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यूं तो मां तेरी ममता का एहसास पहले भी होता था मुझको

पर अब जब से खुद मां बनी हूं

हर पल उन एहसासों को जीने लगी हूं मै।


देखने की कोशिश करती हूं मै जब भी

बचपन की आंखों से मां तेरा रूप,

वो धुंधली सी यादें लगती हैं मुझको

जाड़े के मौसम में खिली हुई सी धूप।


मां अब मै महसूस कर सकती हूं कि 

वो लम्हा कैसा होगा

जब मै रोई और तू मुस्काई होगी

अपने ही अक्स को गोद में ले

तू कितनी हर्षाई होगी।

मेरी हर सिसकी पर, लोरी की थाप तू बन जाती होगी

और मेरे हंस देने पर, जीवन के सारे दुःख सुख भूल जाती होगी।


कैसे मुझे सूखे बिस्तर पर सुला

तू गीले में ही सो जाती होगी

और मेरे भविष्य के सपने बुनने में ही

तेरी हर सुबह हो जाती होगी।


मै जब घुटनों के बल चलती होंगी

और अपनी तोतली ज़ुबान में मां-मां करती होंगी

तब तू बुरी नज़र से बचाने मुझको

कैसे काला टीका लिए

मेरे पीछे-पीछे दौड़ जाती होगी।


हां मां, ये अच्छे से याद है मुझको

कि जब मै कुछ बड़ी हुई तो 

खुशी - खुशी पढ़ने भेजा गया था मुझको

पर वो तू ही थी मां, 

जिसने ज़िन्दगी के मुश्किल हालातों से मुझको लड़ना सिखाया

तेरी तरह बन त्याग - तपस्या की मूरत 

सींच सकूं मै भी अपने उपवन को

तेरी प्यार भरी सौगातों ने ही मुझको इस काबिल बनाया।


ओ मां, जी चाहे मेरा

न्योछावर कर दूं इस जहां कि सारी रौनकें और नेमतें भी, 


तेरे हाथों के उन छालों पर 

और तेरे दुलार में लिपटे रोटी के उन निवालों पर।


मेरी बीमारी में तेरे नीम हकीमों के टोटकों पर,

और मेरी सलामती के लिए तेरे लबों की दुआओं पर।


तेरे उस नाराजगी भरे थप्पड़ पर,

और मुझे सज़ा देने के बदले

तेरी आंखों से बरसे नीरों और उस चुप्पी पर।


मेरी चिंता में उमड़ रहे तेरे मन के हजार सवालों पर 

और मुझे पालने में पीछे छूटे,

तेरे कुछ बनने के अधूरे ख्वाबों पर।


इसके आगे क्या कहूं मां

बस इतना ही जानू मैं

कि चाहे खुद को भी हार जाऊं

पर इस काबिल नहीं कि

तेरी ममता का कर्ज कभी उतार पाऊं मैं।


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