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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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अनटाइटल

अनटाइटल

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उस हंसी के जैसा देखा चांद है!

वो फ़लक पे आज निकला चाँद है


रोशनी है इसलिए मेरी गली 

हाँ इधर से दोस्त गुजरा चाँद है 


क्यों न दीवाना बने उसका दिल ये

हू ब हू वो चेहरा लगता चाँद है 


इसलिए दीदार कर पाया नहीं 

वो गली में ही न ठहरा चाँद है 


देखिए भी इक फ़लक पे रहता

इक जमीं पे चलते देखा चांद है

चाहत हूँ मैं बनाना अपना वो

लग रहा जो आज़म चेहरा चाँद है!

आज़म नैय्यर 


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