STORYMIRROR

aazam nayyar

Abstract

4  

aazam nayyar

Abstract

अजनबी

अजनबी

1 min
274


राह में कोई मिला इक अजनबी है 

दोस्त अपना वो हुआ इक अजनबी है 


कल तलक था गैर आज़म के लिये जो 

आशना वो अब बना इक अजनबी है 


इसलिये आवाज़ दे उसको नहीं थी 

वो मुझे जैसे लगा इक अजनबी है 


साथ जिसके ही यहाँ पल थे गुजारे 

याद आता वो सदा इक अजनबी है 


क्या इरादा है ख़ुदा उसका न जाने 

देखता ही वो रहा इक अजनबी है

 

चाहता है दोस्ती करनी कहीं वो 

फ़ूल मुझको दे गया इक अजनबी है


ज़िंदगी भर के लिये मेरा बना दे 

जो हंसी चेहरा ख़ुदा इक अजनबी है


कल तलक था गैर आज़म के लिये जो 

आशना वो अब बना इक अजनबी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract