पुष्प की अभिलाषा
पुष्प की अभिलाषा
दिल यह कांटो सा तीखा होकर
दिल यह बातों में चुभता है
कि यह दिल बातों से चुभता है
फिर भी एक पुष्प की अभिलाषा में
ये पगला इधर उधर भटकता है
कि हां ! सच में ये इधर उधर भटकता है ।
रात अकेले में दिल बातें कहता है
ये नहीं और वो क्यों नहीं मिलता है
कि अरे रे ! अरे ! वो क्यों नहीं मिलता है
जो यह चाहता है ; वैसा वो भी चाहता है
पर यह दिल आपस में कुछ नहीं कहता हैं
कि न जाने क्यों कुछ आपस में नहीं कहता हैं ।
पुष्प की कोमलता क्या स्वीकार होगी
दिल की निर्मलता दिल में खोजनी होगी
कि दिल की निर्मलता दिल में खोजनी होगी
एक पुष्प की अभिलाषा की आशा में
जीवन की सारी सीमाएं लांघनी होगी
कि जीवन की सारी सीमाएं लांघनी होगी ।
एक पुष्प खिलने को धूप चाहिए
वो पुष्प मुरझाये तो भी धूप चाहिए
कि पुष्प मुरझाने को भी धूप चाहिए
उस पुष्प की क्यों करें अभिलाषा
जब यह धूप उसे बदल सकती है
कि हां ! यह धूप उसे बदल सकती है ।
धूप खिली और पुष्प खिल गया
इस प्रकाश में रूप निखर गया
कि इस प्रकाश में रूप निखर गया
अंधेरो का काम ही है सब कुछ छूपा लेना
प्रकाश के आकाश में अंधेरा खुद छुप गया
कि हां ! अंधेरा स्वयं छुप कर चुप हो गया ।
पुष्प सा मन खिलता और मुरझाता है
पुष्प की अभिलाषा में क्या कुछ नहीं करता है
कि यह मन बहुत कुछ करता है
यह पुष्प अगर मिल भी जाए तो
इस की सुगंध लेकर इसे समाप्त करता है
कि हां ! इसे समाप्त करके ही चैन प्राप्त करता है।
