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Babu Dhakar

Others

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Babu Dhakar

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बादल बरसें यादों के

बादल बरसें यादों के

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बादल‌ बरसे आंखें हुईं नम

किया मन ने इनको नमन

जो चाहे वो मिल जाए ऐसे तुरंत

पानी बारिश का आंखों से जैसे रहा बरस

जो जहां बरसना था वो वहां ही बरसा

बैचेन जनों का मन बड़ा हर्षा

जिसे चाहत थी उसे पाने की

उसे वहीं बरसने पर जो मिली राहत थीं

यह मौसम है पल में ऐसे बदल जाये

बदले हुए रूप में कहीं हमें सनम मिल जाए

जिसे चाहे वो आसानी

से अगर मिल

इन नम आंखों में जैसे कमल खिल जाए

जो होना था वो हो ही जाता है

मन से मन मिले जब मिलने के लिए

तब चाहत का बादल चाहत देखकर

ऐसे अचानक हीं बरस भी जाता है

जो सोचा है वो सोच में जब आता नहीं है

खुशियों का पल तब बिन कहें ऐसे आता ही नहीं है

जैसे बारिश के बादल सा बनकर कोई बेशुमार चाहने लगे

फिर ऐसे बरसकर न‌ जाने कहां ओझल‌ हो जाता है ।



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