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Dr. Ritu Chauhan

Abstract

3.6  

Dr. Ritu Chauhan

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ज़माना बदल गया है

ज़माना बदल गया है

2 mins
360


"बेटा जल्दी उठो !

सुबह हो गई

पूजा करो ,नाश्ता करो "


माँ की आवाज़ से हड़बड़ा कर उठ बैठा

डर के मारे पसीने से तर था

"ओह ! शुक्र है वो सपना था "

जल्दी जल्दी तैयार हुआ

प्रभु चरणों को छुआ

हे भगवान् ! कॉलेज का पहला दिन है

या कहूँ रैगिंग का पहला दिन है

माँ का आशीर्वाद , दही खाकर ,भगवन सहाय

दो किताब बगल में दबाकर ,क़दम बढ़ाये

अरे !

आ गया कॉलेज का मैन गेट

धीर धीरे चलने से हो चुका था लेट

ख़ैर ,हिम्मत दिखाई

पर शीघ्र ही टूटती नज़र आई

सामे कुछ लड़कियाँ नज़र आईं

ईशारा हुआ

लगा जैसे मौत का फ़रमान हुआ

लजाया घबराया सकपकाया

पहुँच पास उनको सर नवाया

फिर न पूछिए ज़नाब क्या क्या नहीं हुआ

ऐसा उतारा हमें कि फिर खड़ा नहीं हुआ

इज़्ज़त के दामन को तार तार कर दिया

नारियों ने अपने शोषण का बदला लगातार लिया

मुर्गा बनवाया ,गाना गवाया

और क्या कहिये -नचनिया बनके नचवाया

सारे लड़के हाथ बांधे रहे खड़े

लगता था जूते चप्पल बस अभी पड़े अभी पड़े

सीनियर लड़के भी चुपचाप ख़िसक लिए

लड़कियों के पीछे से निकल लिए

केवल जूनियर लड़कों की रैगिंग होनी थी

जूनियर लड़कियों की तो इज़्ज़त होनी थी

आखिर सुबह से शाम हुई

टाँगे दे गईं ज़वाब ,दुरगते शान हुई

पहुंचे प्रिंसिपल के पास शिकायत लेकर

अरे ! वो तो उल्टा हम पर ही बरस लिए

बोले- किसने कहा था शुरू के माह कॉलेज आने को ?

पता नहीं लड़कियाँ छेड़ती हैं हर आने जाने वालों को

बाप भाई ने नहीं समझाया था

हमने तो भई , तुम्हें नहीं बुलाया था

हर गली नुक्कड़ चौराहे पर ,लड़कियों का आतंक छाया है

फिर भी तुम्हें डर नहीं लगा और कॉलेज भाया है

तुम्हारी इज़्ज़ते ख़ैरियत की कोई गारंटी ले नहीं सकता

घर की चारदीवारी में रहो ,कब हमला हो कह नहीं सकता

जहाँ चार पांच लडकियां हो खड़ी

वहाँ जाने की तुम्हे क्या पड़ी

रात को तो बिल्कुल अकेले न निकला करो

अगर ज़रूरी हो तो माँ बहन को साथ लिया करो

भैया ! समझाना मेरा फ़र्ज़ था

या यूँ कहूँ मेरे बाप का क़र्ज़ था

मेरे पिता ने मुझे समझाया था

मैं तुम्हें समझा रहा हूँ

भैया !

ज़माना बदल गया है

ज़माना बदल गया है।


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