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Dr. Ritu Chauhan

Others

4.8  

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वृक्ष की ज़बानी

वृक्ष की ज़बानी

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[कुल्हाड़ी की आवाज़]

ये आवाज़ कैसी ?

शायद कोई पेड़ काट रहा है,

या यूूँ कहूँ की मूक प्राणी की हत्या कर रहा है,

वृक्ष- जो बोल नहीं सकते, मूक दर्शक बने रहतें हैं,

आँधी , तूफ़ान, झंझावत सब सहते हैं,

तब भी खामोश खड़े रहतें हैं ;

परन्तु ये क्या – वो बोल उठे

शायद पीड़ा की पराकाष्ठा हो चुकी।


संपूर्ण वृक्ष जाति चीत्कार कर मनुष्य से मुखी –

“ऐ मूर्ख ! मत काट अपनी जीवन रेखा,

वृक्ष काटने का परिणाम क्या तूने नहीं देखा ?

स्वार्थ की आंधी में गिर कर इतना कृत्घन न बन,

काट कर हम निःसहाय प्राणियों को तू यूूँ न तन।

हम मूल हैं भारतीय सभ्यता और संस्कृति के,

तू लिप्त है ऋणों में इस प्रकृति के ;

प्राण वायु देतें हैं हम विषैली गैस लेकर ,

परन्तु मिली मृत्यु हमें , बदले में औषधियां देकर।

लकड़ी , फल, फू ल , छाया सब दिया तुझे ,

प्रत्येक अंग देकर सर्वस्व अर्पण किया तुझे।

पृथ्वी का तापमान नियमित और वर्षा कराते हैं हम,

भूस्खलन , बाढ़ एवं प्रदू षण को रोकते हैं हम।

वृक्षों की रक्षा हेतु चला चिपको आन्दोलन ,

बहुगुणा आदि ने मिलकर दिया एक नवजीवन।

हेमानव ! अगर नहीं बन सकता तू ‘बहुगुना’ ,

तो कु छ तो सीख ले, कु छ तो गुण अपना।

देख न निज वर्तमान को तू ,

भविष्य की नन्ही कलियों पर भी दे ध्यान तू।

वृक्षों के अभाव में वो कदापि न खिलेंगी ,

शुद्ध वायु के बिना , हाय ! वो कैसे पलेंगी ?

जाग अब तो जाग , हे चिरनिद्रा में रिक्त प्राणी ,

उठ देख और दे सबको शुद्ध वायु और पानी।

मत काट , हम शुभचिंतक हैं तेरे हमें अपना ,

रोपण कर हमारा और पर्यावरण को स्वच्छ बना।


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