होली के रंग, कोरोना के संग
होली के रंग, कोरोना के संग
रंगों का मौसम
दरवाजे पर खड़ा है।
पर हम उसे बुला नहीं सकते
क्योंकि
कोरौना का मौसम अब भी
न जाने पर अड़ा है।
पूरा एक साल निकल गया,
यूँ ही उदासियों में रोते-गाते।
नए साल पर भी लगा रखी हैं,
निगोड़े ने अपनी घातें।
नहीं मिलने देता
अपनों को अपनों से।
यह निर्दयी अभी भी
खुशियों के बीच में खड़ा है।
लोग भी जैसे थक गए हैं।
घरों में बंद पड़े -पड़े चटक गए हैं।
जैसे जीवन रूक सा गया है।
परिवार साथ है लेकिन
रोमांच कुछ हट-सा गया है।
लोगों की जागरूकता ही
इसे सबक सिखा सकती।
क्योंकि ये नासमझ,
अतिथि का फर्ज़ भूल कर
कब से जो यहीं पड़ा है।
होली के त्योहार पर भी
उदासी का रंग चढ़ा हैै।
