STORYMIRROR

Vibha Pandey

Abstract

4  

Vibha Pandey

Abstract

होली के रंग, कोरोना के संग

होली के रंग, कोरोना के संग

1 min
259

रंगों का मौसम

दरवाजे पर खड़ा है।

पर हम उसे बुला नहीं सकते

क्योंकि

कोरौना का मौसम अब भी

न जाने पर अड़ा है।


पूरा एक साल निकल गया,

यूँ ही उदासियों में रोते-गाते।

नए साल पर भी लगा रखी हैं,

निगोड़े ने अपनी घातें।

नहीं मिलने देता

अपनों को अपनों से।


यह निर्दयी अभी भी

खुशियों के बीच में खड़ा है।

लोग भी जैसे थक गए हैं।

घरों में बंद पड़े -पड़े चटक गए हैं।

जैसे जीवन रूक सा गया है।


परिवार साथ है लेकिन

रोमांच कुछ हट-सा गया है।

लोगों की जागरूकता ही

इसे सबक सिखा सकती।

क्योंकि ये नासमझ,

अतिथि का फर्ज़ भूल कर

कब से जो यहीं पड़ा है।

होली के त्योहार पर भी 

उदासी का रंग चढ़ा हैै।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract