मेरी बहकी हुई माला
मेरी बहकी हुई माला
मेरे कुछ अनकहे गीत
यही कहीं रखकर भूल गई।
तुम्हें दिखें तो बताना।
बड़े जतन से शब्दों को संजोया था
जीवन की पथरीले रास्तों से निकाल
एक-एक पल को
अनुभव की माला में पिरोया था।
पर गाँठ लगाने से पहले
उन्हें कहीं रखकर भूल गई।
तुम्हें मिलें कहीं अगर
भटकते शब्दों के मोती
तो पहले गाँठ लगाना।
तुम मुझे पहचान तो लोगे
उनमें से कुछ तो
तुम्हारे ही दिए हुए हैं।
तुमने जो कभी मारे थे,
शब्दों के कोड़े
यह उसी से झरे मोती हैं।
कुछ दूसरों से भी मिले थे।
बड़े संभाल कर रखे थे अब तक।
माला पूरी ही थी,
बस गाँठ लगानी बाकी थी,
कि कुछ बीती मधुर स्मृृतियों ने
पुकारा और मैं उसे यहीं रखकर
उनसे मिलने चली गई थी।
वापस आने पर
अब नहीं मिल रही मेरी
बीती यादों से लिपटी वो माला।
तुम्हें कहीं मिले तो
फेंकना मत, हृदय पर सजाना।
और अबकी बार
मत बनाना कोई बहाना।