निषेध पत्र
निषेध पत्र
थक गया मन,
चुक गया तन
पर हूँ संकल्पित अभी भी।
मुझको रुकना मना है।
भीड़ ने भी साथ छोड़ा
अपनों ने भी खूब तोड़ा।
पर नहीं चिंतित तनिक भी
मुझको थकना मना है।
है हृदय में आस अब भी
जीत की है प्यास अब भी
दग्ध दिल से गीत है मुखरित अभी भी।
झूठ को सहना मना है।
दुख मिले चुपचाप झेलो
दर्द से तनहा ही खेलो।
नियम दिल पर यही है अंकित अभी भी।
अन्यथा कहना मना है।
सुख मिले या व्यथा पाँवों में गति है अभीभी।
भँवर में बहना मना है।
बाढ़ हो या भावनाओं का प्रबल तूफान आए
मुझको तो ढहना मना है।
भँवर में बहना मना है।
