सपना
सपना
एक सुबह जब मैं उठा
आंखे थोड़ी पर दिमाग था पूरा खुला
रात का सपना जो अब टूट चुका था
कल रात हां एक सपना आया था....
पक्षियों की चहचहाट को ढूंढ रहा था
खिले फूलों को नहीं देख पा रहा था
ये क्या हो रहा था?
दिमाग चिल्ला - चिल्ला कर पूछ रहा था
कल जो था वो तो इतिहास था
बहुत सुंदर,सुखद,प्यारा सा अहसास था
पर अब जो भविष्य में देख पा रहा था
जिसमे सबकुछ भयानक,हर कोई अनजान था
कल रात....
एक दिन तो ऐसा आना था
जब कोई इंसान आस पास न होना था
बस मशीनों ने ही इस दुनिया को चलाना था
खतरनाक धुएं ने जान लेने का जिम्मा उठाया था
गैसिली हवाओं ने सबको अपने शिकंजे में फंसाया था
नदियों के स्वच्छ जल में बीमारियों ने अपना घर बसाया था
विश्वास करो ये झूठ नहीं सच पाया था
इसीलिए एक नई दुनिया बनाने का विचार मन में आया था
कल रात......
अपने लिए नहीं हमें अपनों के लिए कुछ कर जाना था
एकजुट होकर ये बदलाव अपने कांधे उठाना था
दोस्तो, आंखें खोलो ये जागने का वक़्त आया था
बचा लो अपने धरोहर बस ये समझाना था
बंजर खेतों को फिर से लहलहाना था
जल, प्रकृति और पर्यावरण को बचाने का सही वक़्त आया था
कल रात हां एक सपना आया था. .....
