STORYMIRROR

AMAN SINHA

Abstract

4  

AMAN SINHA

Abstract

अंध विश्वास

अंध विश्वास

1 min
539

मैंने देखा है यहां लोग दो तरह के है

हाँ यहां पर हर किसी को रोग दो तरह के है

एक को लगता जैसे सब देवता के हाथ है

एक को लगता सबकुछ दानवो के साथ है


मन के विश्वाश को कोई आस्था बताता है

दूसरा भरम को अपने सत्य से छिपाता है

लोगों के आस्था का हो रहा व्यापार है

हर गली में पाखंडियों का लग रहा बाज़ार है


अन्धकार में है भटकता ज्ञान जिसको है नहीं

और कोई ज्ञान को ही सत्य मानता नहीं

नब्ज़ पकड़ी है सभी ने बेबस इंसान की

अपना घर भर रहे सब पैसो से हराम की


कोई खुद को देवी माँ का शिष्य है बता रहा

कोई खुद ही कृष्ण बनकर गीता है सुना रहा

कोई खेलता खोपड़ी से हड्डियां जला रहा

निम्बू और कपूर का कोई टोटका बता रहा


जटाएं फैला के कोई शिष्यता बढ़ा रहा

और कोई खुद ही के महिमा को गा रहा

अपनी बड़ाइयों पर इनको अभिमान है

खुद को समझते ये सब देवता सामान है


ये चरस है इस नशा का ना कोई इलाज़ है

जो किसी को लग गयी तो ना बुझे वो प्यास है

आँख मूंदे चल पड़ा जो तू किसी के बात पर

आँखें तेरी तब खुलेंगी जो पहुँचेगा तू घाट पर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract