विकलांग वर्ष
विकलांग वर्ष
हम जो सुबह उठकर
दांतों पर ब्रुश रगड़ते हैं
कोलगेट पेस्ट के फेनिल उठाते हैं
हमारे दांतों में पायरिया पैदा कर रहा है
विज्ञापन की बात और है
वरना,इन इबारतों के नीचे छिपे
रक्तात देश को देखो
मजे की बात है, दांत हम साफ करते हैं
और मुस्काने यांकी की उजली होती है
ऐसा क्यों है ?
अर्थशास्त्री प्रत्युत्तर दे सकते हैं कि
पूँजी के आयात को क्यों इतना/सरल बना दिया है
और क्यों /देश नासूर को चाटते रहने का
आनंद लेना चाहता है
हम बैसाखियों के बिना /क्यों खड़े नहीं हों सकते, जबकि
न तो हमारी टांगे पोलियो ग्रस्त है
न ही हमारी टांगे गठिया पीड़ित है
वाह! क्या कहा ! चमकती बैसाखियों का अपना आनंद है
इससे हमारे पाँव नहीं थकते
जरा गौर करें
इम्पला,मर्सडीज कहाँ से आती है ?
और कौन लाता है ?
हम जो पांवों पर खड़ा होना चाहते हैं
उन्हें खड़े होना/बैसाखियों पर ही सिखाया जाता है
और जब भी हम यह आवाज उठाते हैं
तो बैसाखियों के कमीशन एजेंट
बारूद से हमारी टाँगें उड़ा देते हैं
फिर बड़े शौक से, विकलांगों का
अंतर्राष्ट्रीय वर्ष मनाते है।