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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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खोयी सड़क

खोयी सड़क

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मेरे घर से

एक सड़क

दौड़ते हुए पहुँच गई

चौराहे पर

खो गई वहाँ

चाय के दुकान पर खड़ी भीड़ मे

नहीं भीड़ की बातों में

बातें :

लाल लाल रोएंदार बातें

नेवले और सांप सी बातें

छिपकिली की कटी पूँछ सी बातें

गिरगिट की रंग सी बातें

ऐसी ढेर सारी बातों को

प्याले में घोलकर पीते लोग

लोगों के बीच मेरी

खोयी सड़क

मेरी खोजी बेचैन नजर

अटक गयी

नल के नीचे बैठकर

रोते छोटे बच्चे पर

जूठे बर्तनों में जो ढूंढ रहा था

उन कारणों को

जिनके चलते

कहीं कांटा कहीं फूल

कहीं पहाड़ कहीं घाटी

कहीं धूप कहीं छाँव

नजर आती जिंदगी

नन्हे हाथों से ग्लास लेते वक्त

उसके आंखों से निकला

छोटा सा दुबला सा पतला सा

चमकदार ताजा आंसू

मेरे ग्लास में गिरकर

छटपटाने लगा

छटपटाहट से नजर चुराने के लिए

गटक डाली मैने चाय

अंदर जाते ही

मेरे खून से मोटा होकर

उछलने लगा

छोटा दुबला-पतला चमकदार आँसू

फिर

खुशी में चिल्ला उठा

छटपटा रहा था मैं

तुम्हारी धमनियों में बहते

अतिरिक्त रक्त के अभाव मे

एहसास होते ही बेचैनी बढ़ी

तेजी से ढूंढने लगा

खोयी सड़क !



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