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Sonam Kewat

Abstract

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Sonam Kewat

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अपने अपने रास्ते

अपने अपने रास्ते

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चाह नहीं है किसी को चाह करने के

आज तक जिसे चाहा भी चाहा है मैंने

उसे ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ा 

वो तो चाहत में कुर्बानी चाहता था 

बस मेरे चाहत की ये चाहत थी कि 

दिल अपना तोड़कर भी बेबसी में

मुझे एक उसका जोड़ना पड़ा

क्यों पड़े इस चाहत के चक्कर में 

इस चाहत ने आखिर दिया ही क्या है 

मैंने तो उसके लिए कुर्बानी दी थी पर 

उसने मेरे लिए किया ही क्या है 

जब दौर था चाहत का तो 

चाहने वाले ने हीं हाथ छोड़ दिया 

अब कैसे कहूं मैं उन लोगों से कि

मेरी चाहत ने ही मुझे छोड़ दिया 

आज फिर एक किसी अजनबी ने 

अपनी चाहत का इजहार किया 

याद आया कैसे उस बेदर्दी ने

मेरी चाहत को इनकार किया 

अरे जाओ,बेफिजूल नहीं है हम जो 

अजनबी की चाहत में खो जाए 

अच्छा यही होगा वो अपने रास्ते 

और हम अपने रास्ते हो जाए!


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