प्रातःकालीन दोहावली
प्रातःकालीन दोहावली
निशा अंधेरी बीते, होवे नव इक भौर।
रात गई तो बात भी, मिला दिन एक और।।
पंछी के मधुर गाने, नींद को देत दस्तक।
आलस की अंगड़ाई, सूरज की किरण तक।।
ताजी हवा के झोंके, ऊर्जा पाता शरीर।
एक राम के नाम से, जागे सकल जमीर।।
हरी मखमली कालीन, चमके मोती ओस।
पहली सुनहरी धूप, फैले कोसों कोस।।
मां की एक पुकार से, टूट जाता है स्वप्न।
बंद आंखों में मद है, खुले ना अभी श्रवण।।
ले कर गगरी कांख पे, पनघट बहुत दूर।
कमर लचकात सुंदरी, भौंर को ढले नूर।।
सरसरी सी सर्दी में, जाता खेत किसान।
तपती धूप से लड़ने, छोड़ता इक निशान।।
पाले की चादर से, ठंडी पड़ी जमीन।
छज्जे से टपके बूंदें, दृश्य रमता नवीन।।