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संदीप सिंधवाल

Drama Others

4.5  

संदीप सिंधवाल

Drama Others

कुछ मेरे मन की

कुछ मेरे मन की

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कुछ मेरे मन की 

बात जो 

दबी रह गई थी।


सबके बीच 

साझी नहीं हो सकी 

पर 

जब अकेला था 

लगा जैसे 

खुद से कह रहा हूं 

बात 

मेरे मन की।


शायद उनके पास 

ना तो वक्त होगा 

ना दिलचस्पी 

बहुत व्यस्त रहते हैं वो।


कुछ बात मेरे मन की 

जिसे मैंने कहना चाहा 

तो खुद को ही पाया 

सुनाने को। 


फिर संतोष भी किया 

कि मैं ही खुद का 

सबसे अच्छा हमराही हूं 

साथी हूं। 


क्योंकि 

सब तो अपनी सुनाते हैं

किसी की कौन सुने? 


बात जो मेरे मन की होती है 

उसे मैं अब खुद सुनता हूं 

और हां अमल भी करता हूं। 



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