एक लड़की
एक लड़की
जी हां लड़की हूं मैं पर मैं भी उड़ना जानती हूं
ख्वाहिशों से भरे उस आसमान को मैं भी छूना चाहती हूं
पसंद है मुझे उड़ना अपने सपनों के पँख फैला कर
पर लोग मुझे अक्सर रोक देते हैं अपनी बातों में बहलाकर
हँसो नहीं तुम, घर में रहो और धीमे धीमे बोलो
लड़की हो तुम लड़का नहीं औकात ना अपनी भूलो
इसकी उसकी सबकी सुनकर थक कर टूट चुकी हूं
अब तो बस खुशियाँ अपनी सपनों में ढूंढ रही हूं
चाहती हूं मैं भी पढ़ना लिखना बाहर जाना ओर कमाना
पापा ओर भाइयों की तरह परिवार का बोझ उठाना
कंधे मेरे नाजुक नहीं ये फौलाद बन सकते है
एक लड़की की कोख से ही घरों के दीपक जलते है
हाँ कोमल हूं मैं फूल सी और एक पंख सी नाजुक हूँ
पर नाम आए परिवार का तो सबसे लड़ जाती है
पूजते हो माँ काली को मुझको धिक्कारते हो डांटते हो फटकारते हो और हाथ उठाते हो
हद तो बेशर्मी की पार ऐसे कर जाते हो जब अपनी लम्बी उम्र के लिए पूजा करवाते हो
मुझको भी जीना है हक अपने सभी लेकर
आंखों ओर दिल में उम्मीद भरे सपने लेकर
अगर ज्यादा नहीं तो कम भी मत तुम मुझको आंको
ज़रा एक बार बस एक बार खुद के अंदर तो झांको
