कमल घर चल...
कमल घर चल...
किसी ने मुझे कहा आजकल लिख नही रहे?
कोई कविता लिख दीजिये...
कविवर, लेकिन कविता सरल होनी चाहिए...
फिर क्या...
कागज़ कलम लेकर मैं जुट गया कविता लिखने के लिए...
कमल घर चल...नल से जल लेकर चल....
बात बनते ना देख मैंने कविता की भाषा बदलकर देखा...
जॉनी जॉनी...यस पापा....
फिर भी कुछ मिसिंग सा लगा...
मेरी कविताओं का स्टैण्डर्ड जैसे गिरता सा लगा....
मैंने फिर रोटी और ग़रीबी पर लिखना शुरू किया....
मुझे याद आयी वो ख़बर जहाँ जिक्र था भूखमरी का...
आधार कार्ड के बिना एक गरीब के भूखे मरने का...
मेरा कवी मन मुझे सवाल करने लगा...
ये कैसा आधार है?
जो अनाज़ से भरे गोदामों के होते हुए भी...
किसी गरीब को अनाज़ का आधार न दे पाता है...
जैसे आधार नंबर मात्र एक डेटा है....
एक शरीर का...एक वोट का....
या फिर डेटा कलेक्शन का डेटा मात्र?
मैं कागज़ कलम बंद कर देता हुँ...
इस रफ ड्राफ्ट को फिर से पढ़ने लगता हूँ ....
मुझे यह कविता बेहद गहरी लगने लगती है....
इतनी गहरी कविता से क्या हर पाठक दूर नही भागेंगे?
फिर क्या....
मैं सरल वाली कविता फिर से लिखना शुरू कर देता हूँ...
कमल घर चल...नल से जल लेकर चल....
