कविता फँस गयी कोराँटीन में
कविता फँस गयी कोराँटीन में
कविता साहित्य
लेख सबके सब
इन करोनावायरस
के शिकार हैं !
हमारी कल्पना
सोच कोराँटीन के
कैद में रहकर
सब कुछ बेकार हैं !!
धरा ,गगन ,
दसों दिशा डर गये
डर गया है
विश्व मानव आज का !
सोच बस जाती है
वहीँ पर और
डर सताता है
किसी के साथ का !!
अदृश्य करोना के
कहरों ने ऐसा
दिन सबको
दिखला के छोड़ा है !
परमाणु शक्ति के
दिगाज्जों के
घमंडों को
निज मुठ्ठी में मोड़ा है !!
एक ही बात की
विश्व में चर्चा है
कैसे हम इनको
धूल चटा सकें ?
अदृश्य करोना
कहरों को हम
किस विधि से
इसको मिटा सकें ?
हम उठते हैं ..
हम सोते हैं बस
बस दहशत ही
हमें सताती है !
इस क्षण में
रस अलंकारों की
कल्पना भी धूमिल
पड़ जाती है !!
कविता ,लेख
साहित्य की चर्चा
भला इस परिवेश
में होगा कहाँ ?
पहले शत्रुओं का
विनाश कर लें
तब सुगन्धित फूल
खिलेगा यहाँ !!