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Lakshman Jha

Tragedy

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Lakshman Jha

Tragedy

कविता फँस गयी कोराँटीन में

कविता फँस गयी कोराँटीन में

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कविता साहित्य

लेख सबके सब

इन करोनावायरस

के शिकार हैं !

हमारी कल्पना

सोच कोराँटीन के

कैद में रहकर

सब कुछ बेकार हैं !!


धरा ,गगन ,

दसों दिशा डर गये

डर गया है

विश्व मानव आज का !

सोच बस जाती है

वहीँ पर और

डर सताता है

किसी के साथ का !!


अदृश्य करोना के

कहरों ने ऐसा

दिन सबको

दिखला के छोड़ा है !

परमाणु शक्ति के

दिगाज्जों के

घमंडों को

निज मुठ्ठी में मोड़ा है !!


एक ही बात की

विश्व में चर्चा है

कैसे हम इनको

धूल चटा सकें ?

अदृश्य करोना

कहरों को हम

किस विधि से

इसको मिटा सकें ?


हम उठते हैं ..

हम सोते हैं बस

बस दहशत ही

हमें सताती है !

इस क्षण में

रस अलंकारों की

कल्पना भी धूमिल

पड़ जाती है !!


कविता ,लेख

साहित्य की चर्चा

भला इस परिवेश

में होगा कहाँ ?

पहले शत्रुओं का

विनाश कर लें

तब सुगन्धित फूल

खिलेगा यहाँ !!







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