काश ना हाथ उठाया होता
काश ना हाथ उठाया होता
आज स्थिति अलग होती,
काश वो रात नहीं होती,
एक रिश्ता सीधा सच्चा होता,
जीवन कितना अच्छा होता,
सब बाधाओं के पार निकल ,
हम सूरज को छू सकते थे,
साथ में मिलकर बढ़ते तो ,
दूर बड़ा चल सकते थे,
हम छू सकते थे मंज़िल अपनी,
निश्छल कड़े प्रयास से,
पा सकते थे सारे सपने,
एक दूजे के साथ से,
पर उस एक थप्पड़ ने जीवन की,
दिशा वो सारी मोड़ दी,
उस थप्पड़ की आवाज़ ने,
रिश्तों को मज़बूती तोड़ दी,
क्या ठाना था हमने मन में,
क्यों राह में ऐसे भ्रमित हुए,
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी,
क्यों पितृसत्ता के मद में छलित हुए,
उस एक रात ने जीवन मेरा,
कितना बदला क्या तुम जान सकोगे?
टूट गिरा विश्वास जहां से,
क्या टूटे टुकड़े पहचान सकोगे?
बदली जीवन की धारा कि,
कठिन समय वो बड़ा रहा,
उस एक पल में मुझको,
लड़की होने का अफ़सोस हुआ,
पर ना दोष तुम्हारा था ,
वो शायद मेरी हर थी,
मेरे विश्वास की नींव पर,
वो आवाज़ एक प्रहार थी,
आज भी पीछे मुड़ती हूँ तो,
समय याद वो आता है,
साथ जिए जो पल जीवन के,
हर पल बड़ा रुलाता है,
आज भी लगता है मुझको,
जीवन में खुशियों का साया होता,
और रिश्तों में मर्यादा होती,
काश! उस रात ना हाथ उठाया होता,
उस रात ना हाथ उठाया होता।।