क्या सोचा है
क्या सोचा है
रो रही जग नारी, बन गये लोग व्यापारी,
अपनी परीक्षा देते देते वो तो बेचारी हारी,
कभी जन्म से पूर्व मार दिया है निशाचर,
कभी दहेज के लोभी जलाकर वो है मारी।
फिर भी पुरुष से कंधा मिलाकर खड़ी है,
कभी वज्र बनकर खड़ी सीता सी दुलारी,
कभी सुकोमल बनकर छिपी खड़ी बेचारी,
सुबह शाम उठ खड़ी वो हिम्मत ना हारी।
अस्तित्व नहीं मिटा नारी का लाख मिटाया,
सौ सौ सितम किये उस पर हँसता ही पाया,
अनेक से लोगों ने किया नारी संग धोखा है,
उस अद्भुत कृति नारी बाबत क्या सोचा है?
मात पिता की सेवा की श्रवण कुमार कहाया,
वृद्ध आश्रम उन्हें छोडऩे आधुनिक युवा आया,
किये जा कलियुग में जी चाहे किसने रोका है,
क्यों बदल चुका ये इंसान आज, क्या सोचा है?
भाई भाई सा प्रेम भारत में सदा मिलता रहा है,
आज वो भरत-राम-लक्ष्मण सा, प्यार कहां है,
भाई भाई का दुश्मन बना देते रहते वो धोखा है,
कहां खो गया आज वो प्यार जग, क्या सोचा है
क्या सोचा है इस जहां ने,समझे नहीं कोई बात,
दिल में कभी उजाला हो कभी आ जाती है रात,
सुख दुख आते जाते रहते हैं, इंसान मूक दर्शक,
दुख पाकर चला जाये जग से,कहानी लोमहर्षक
दिन रात कमाता दर्द सहकर जाता रोटी न पाता,
दिनभर धन दौलत चाहता,रोटी बैठकर न खाता,
घर में बेचारा काम करे, रखता हाथ में पोचा है,
क्यों दुर्दशा हुई इंसान की, तुमने क्या सोचा है?
अमीरों के घर भंडार भरे, गरीब को नहीं दाना,
चार दिनों से भूखा काम पर, मिला नहीं खाना,
पीट रहा गरीब को अमीर, यह दृश्य अनोखा है,
कब दोनों की खाई पाटेगी, तुमने क्या सोचा है?
पापी मौज उड़ा रहे, ईमानदार जग में रोते सारे,
देख देख ईश्वर की लीला, जगत वाले सब हारे,
इस जहां में अमीर ने गरीब को हमेशा नोचा है,
भेदभाव कैसे मिट पाएगा,जहां से क्या सोचा है?