भूमिपुत्र किसान
भूमिपुत्र किसान
चले किसान हल उठा,घुंघरू बजते है झमझम,
खुशियों दिल में भरती, नष्ट हो जाते सब गम।
खेती बाड़ी करे किसान ,मन में नहीं रखते बैर,
दुष्ट संग दुश्मनी करे,मार भगाते न समझ खैर।
धरती के वो रखवाले,सैनिक और जग किसान,
अन्न उपजाता खेतों में, लोग सोते हैं चादर तान।
किसान बोझा ढोया करते, दुख में वे रोया करते,
ढूंढे अब न मिलती वो,बैलों से बीज बोया करते।
जय जवान जय किसान,देता जग को एक पैगाम,
सैनिक करता सेवा सीमा, किसान खेतों में काम।
कभी नहीं थकता है, सुबह काम और काम शाम,
चाहे कोई याद करे न, जग में हो बड़ा इक नाम।
किसान से बड़ा नहीं है, जग में ऐसा कोई वीर,
अन्न उपजाता खेतों में, हर लेता है जन की पीर।
कम होती कभी पैदावार,नहीं मानता वो है हार,
फसल तबाह हो जाती है,पर नहीं खोता है धीर।
सर्दी,गर्मी,बरसात में, करता मिलता हरदम काम,
लोगों को सोने से न फुरसत,उसे नहीं है आराम।
मंदिर,गुरुद्वारे घूमते हैं जन, कोई गाये प्रभु राम,
उसे तो खेत ही नजर आता, सबसे उत्तम धाम।