प्रेम
प्रेम
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दूर दूर बैठे हुये, करते दृग भी बात,
सुबह बीतता प्रेम में,कभी बीते रात।
कभी मुस्कुराने लगे,कभी हो मायूस,
कभी मनाते फिरे, बनते बुरे हालात।।
आलिंगन करे, ऊंचे तरुवर चोटियां,
पत्ते चौड़े लग रहे,जैसे पके रोटियां।
प्रकृति में फूल खिले,मन उभरे प्यार,
लगे दिल में पड़ा,अब तक था उधार।।
शाम हुई चूमती, रश्मि सूरज हजार,
चकवा चकवी तकते,प्रेम था अपार।
चहुं ओर पीतांबर, सरसों फूले फूल,
भंवरे, तितली घूमते, हो रहे बेकरार।।
सजी है प्रियतमा,प्रियतम आये आज,
घूंघट में मुस्कुराती, है शर्म की लाज।
मिलन कभी होगा, छुपा दिल में राज,
कितने वो अधीर हैं,ओढ़े प्रेम का ताज।।