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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Drama Crime

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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Drama Crime

किताबें

किताबें

1 min
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किताबों की कद्र घटी, बन गई आज कबाड़,

मोटी मोटी किताबें अब, बन चुकी हैं बेकार।

साहित्य रोता आज, नहीं पढ़ रहा है अब कोई

न जाने आज दिन, क्यों इंसान अकल है सोई।


किताबों की होती कद्र, वो जमाना गया है दूर,

मोबाइल चलाते हैं आज, हो रहा उन्हें गरूर।

धार्मिक किताबें भी अब, खो रही है पहचान,

संस्कृति को खो चुके हैं, होती थी जन की शान।


पुस्तकें ज्ञान का भंडार, आज नहीं यह उक्ति,

चाहे गाय चराता हो, उसकी होती थी शक्ति।

व्यसनों में जन खो रहा, बुरी किताबें पढ़ता है,

अड़ियल टट्टू सा वो, हर बात पर अड़ता है।


पुस्तकें सिमट गई, कौन बचा पाएगा जन आज,

पर पुस्तकें ज्ञान होती, छुपा हुआ है इनमें राज।

चले गये वो बुजुर्ग जिनको पुस्तकों पर था नाज,

युवा पीढ़ी को पुस्तकों की, बचानी होगी लाज।


पुस्तकें अमिट भंडार है, ज्ञान और विज्ञान जान,

ये ही रास्ता दिखवाती हैं, अलग होती पहचान।

पुस्तकें उठा लो अब, ये ही सफलता की राह,

जैसे होी खाने की, वैसी होनी चाहिए ये चाह।।



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