Anushree Goswami

Drama Inspirational

4.4  

Anushree Goswami

Drama Inspirational

बेबाक बचपन

बेबाक बचपन

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कुछ लोग कहानियाँ लिखते हैं,

अपने हाथों की​ लकीरों पर,

कुछ रह जाते हैं खोये,

बनी बनाई तस्वीरों पर,

हम सब ने लिखी हैं,

अपनी - अपनी कहानियाँ,

कभी पर्वत से लड़कर,​​

कभी पर्वत से सीखकर।


गर पता ही न होती पर्वत की ऊँचाई,

कबका चढ़ गए होते,

गर पता ही न होती समुंदर की गहराई,

एक नई दुनिया की सैर पर होते।


ऐसे ही तो होते हैं बच्चे,

अनजान हर चीज़ से पर क्षमताएँ अनगिनत,

डर नहीं होता ज़िन्दगी में क्योंकि,

डर नाम का शब्द ही नहीं होता।


बचपन में जो सिखा दिए हम,

"हिन्दू - मुस्लिम भाई - भाई",

गर पता ही न होता क्या हिन्दू क्या मुस्लिम,

नज़रिये में हमारी सब इंसान ही रहते।


अब तोड़ दो हर दरवाज़े,

अँधेरों की राह में,

एक नया सवेरा ढूँढ कर लाओ,

नई सोच, नए राग में।


कि जहाँ हम भी बच्चों की तरह,

अनजान ही हों,

जानकर फिर सबकुछ,

हम इंसान ही हों।।


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