अमृत धारा
अमृत धारा
नदी को बहते देखा है ?
पीयूष श्रोत सी जल-धारा !
गंगा, यमुना, सरस्वती की,
संस्कृति याद दिलाती है,
नवजीवन की श्रोत है यह,
नयी राह दिखलाती है ।
जीवन के कौतूहल में भी,
अविरल बहती जाती है,
नदी है समस्त प्राणी की जननी,
फिर भी मैली हो जाती है ।
पशु-पक्षी हो या मानव जीवन,
सबकी जीवन प्रदायनी है,
देती अनुराग सभी को
जीवन आनंदीत कर देती है ।
धड़ती है विकराल रूप यह,
जीर्ण-शीर्ण कर देती है,
जननी है यह जीवन की धारा,
जीवन का उद्देश्य बताती है ।