ख़ामोशी में शोर
ख़ामोशी में शोर
इस ख़ामोशी में शोर क्यों है,
दिल में उभरता दर्द पुरजोर क्यों है,
तुमसे दिल का लगाना दिल्लगी बन गया,
आखिर अपना रिश्ता इतना कमज़ोर क्यों है !
इस ख़ामोशी में शोर क्यों है
इस टीस का दर्द मुँहजोर क्यों है
क्यों बेगैरत लगने लगे सवालात मेरे अब
अश्कों की मोहताज नयनों की कोर क्यों है !
इस ख़ामोशी में शोर क्यों है
बंधे जज़्बातों की छूटती डोर क्यों है
झूठे वादों का कारवां शायद ठहर गया है
मंद उठती सदाओं में आंधियों सा ज़ोर क्यों है।