STORYMIRROR

Anita Sharma

Abstract

4.5  

Anita Sharma

Abstract

उंगलियाँ

उंगलियाँ

1 min
264


कलम थामे कागज को तकती हैं उंगलियाँ

लिखने की आदी...कब थकती हैं उंगलियाँ


शब्दों की धुन पर थिरक उठती हैं उंगलियाँ 

उफनते उद्गारों से बिदक उठती हैं उंगलियाँ


ख़ुशी में उल्लसित दर्द में जमती हैं उंगलियाँ

कभी तेज़ चलती क्षणिक न थमती उंगलियाँ


कितने अनगढ़ से किस्से गढ़ती हैं उंगलियाँ

जितने मनोभाव...दिलसे पढ़ती है उंगलियाँ


हां...अनुभूति की धारा में बहती हैं उंगलियाँ

एक चुप्पी सी साधे कुछ कहती हैं उंगलियाँ


बिन जुबां कितना कुछ बोलती हैं उंगलियाँ

निष्पक्ष ज़हन के राज़..खोलती हैं उंगलियाँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract