कभी उठती बैठती, मटकती अल्हड़ चली हो तुम कभी उठती बैठती, मटकती अल्हड़ चली हो तुम
जब हमारे खुद की हाथों की उंगलियाँ एक जैसी नहीं है जब हमारे खुद की हाथों की उंगलियाँ एक जैसी नहीं है