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Prashant Beybaar

Abstract Others

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Prashant Beybaar

Abstract Others

बात करूँ तो खो जाऊँ

बात करूँ तो खो जाऊँ

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बात करूँ तो खो जाऊँ, वृंदावन की गली हो तुम

कभी उठती बैठती, मटकती अल्हड़ चली हो तुम

पैरों में बिछुए कसे थे, मगर सरके सरके जा रहे

नाज़ुक गुदाज़ उंगलियाँ, मखमल की डली हो तुम



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