रफ्ता रफ्ता
रफ्ता रफ्ता
वो कल से पहले का दिन था ,
जब हिला एक तिनका,
वो उकता गया था उन्ही से,
घर बसाया था जिनका,
कई खाब टूटे कडवी हकीकत,
यही किस्सा है आदमी का,
अंधेरों के आगोश में है ,
ये अब हाल है रोशनी का ,
नुमायाँ मेरी शायरी में,
है अक्स एक महजबीं का
वो लूट कर ले गया क्या ,
मेरा था क्या जो छिनता।
