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Nirmal Sharma

Abstract

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Nirmal Sharma

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रफ्ता रफ्ता

रफ्ता रफ्ता

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वो कल से पहले का दिन था ,

जब हिला एक तिनका,

वो उकता गया था उन्ही से,

घर बसाया था जिनका,

कई खाब टूटे कडवी हकीकत,

यही किस्सा है आदमी का,

अंधेरों के आगोश में है ,

ये अब हाल है रोशनी का ,

नुमायाँ मेरी शायरी में,

है अक्स एक महजबीं का

वो लूट कर ले गया क्या ,

मेरा था क्या जो छिनता।


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