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Nirmal Sharma

Abstract

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Nirmal Sharma

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रफ्ता रफ्ता

रफ्ता रफ्ता

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जिंदगी के धूप साये चले गए 

वो किसी बादल से आये चले गए 

वक़्त के सुर ताल सरगम से अलग 

साज़ से हम थरथराये चले गए 

हर पैगम्बर को कहा पहले ख़ुदा 

फिर सलीबों पे चढ़ाये चले गए 

मोमिनों की भीड़ ने पागल कहा 

पलट कर पत्थर चलाये, चले गए 

बोझ लादे जिगर पे हर ज़ख्म का 

अपनी हिम्मत आज़माये चले गए 

तुम को क्या अब दोष दें वो हम ही थे 

जो बुतों को भी मनाये चले गए. 



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