रफ्ता रफ्ता 4
रफ्ता रफ्ता 4
रहे चुप चाप से तन्हा,
किसी भी बात से तन्हा,
मगर ऐसा हुआ अक्सर,
रहे पहले सफ़े पर ही ,
हमेशा सुर्ख़ियों में हम,
रहे फूलों की सोहबत में,
तो कांटे भी थे किस्मत में,
न जाने कितने सीनों में
चुभे हैं बर्छियों से हम,
कभी हंसकर सहा सब कुछ
कभी बेबाक लफ्फाज़ी
ख़ुदारा तू बता कब तक
बचें इन तल्खियों से हम ,
सिमट कर अपनी नज़रों के
ही दायरों में दीवानों से
गुज़रना ज़िन्दगी का देखते
हैं कनखियों से हम।
