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Nirmal Sharma

Abstract

4  

Nirmal Sharma

Abstract

रफ्ता रफ्ता 4

रफ्ता रफ्ता 4

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रहे चुप चाप से तन्हा, 

किसी भी बात से तन्हा,

मगर ऐसा हुआ अक्सर,

रहे पहले सफ़े पर ही ,

हमेशा सुर्ख़ियों में हम, 

रहे फूलों की सोहबत में,

तो कांटे भी थे किस्मत में,

न जाने कितने सीनों में 

चुभे हैं बर्छियों से हम, 

कभी हंसकर सहा सब कुछ

कभी बेबाक लफ्फाज़ी 

ख़ुदारा तू बता कब तक 

बचें इन तल्खियों से हम , 

सिमट कर अपनी नज़रों के

ही दायरों में दीवानों से

गुज़रना ज़िन्दगी का देखते

हैं कनखियों से हम।


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