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Prashant Beybaar

Abstract Action

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Prashant Beybaar

Abstract Action

लोग बैठे हैं जिगर को थाम के, ऐसे क्या किस्से तुम्हारे नाम के

लोग बैठे हैं जिगर को थाम के, ऐसे क्या किस्से तुम्हारे नाम के

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लोग बैठे हैं जिगर को थाम के 

ऐसे क्या किस्से तुम्हारे नाम के


दिन तो सारे मुफ़लिसी में ढल गए

हैं रईसी के नज़ारे शाम के 


तुम शहर में क्या हुए दाख़िल सनम

आदमी बाक़ी नहीं अब काम के 


नींद के तो दिन वही थे साथ में 

अब तो बस लम्हे बचे आराम के


हद जुदाई की है बस इक 'क्लिक' यहाँ

दौर बीते ख़त के और पैग़ाम के


इक बड़ा बाज़ार है ये ज़िन्दगी

आदमी मिलते यहाँ हर दाम के।


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