पुरुष
पुरुष
तन, बल, बुद्धि, विवेक मिले जो,
तभी पुरुष का सृजन हुआ !
तन कठोर है, मन कठोर है,
मदमाता पौरुष गहरा !
पूर्ण रहा परिपूर्ण बने तब,
मेल शक्ति से हो ठहरा !
मर्यादित हो इच्छाओं का,
जब तब ही तो दमन हुआ !
अर्जन करना प्रथम लक्ष्य है,
पोषण जिम्मेदारी है !
ज्ञानार्जन है संग पराक्रम,
तगड़ी हिस्सेदारी है !
अर्जित करना मान जानता,
धर्म, कर्म को नमन हुआ !
कर्म सदा ही पूजा इसने,
रेख हाथ की बदली है !
जाने कैसे भाग्य सँवरता,
दशा, दिशाएं बदली है !
दानी बनकर हाथ बढ़ाए,
कुविचारों का शमन हुआ !
अंधकार से सदा लड़ा है,
पाने को यह उजियारा !
मन के भी तम को मेटा है,
जगमग है अंतस सारा !
पूर्णात्मा जाना है निज को,
तभी दशानन दहन हुआ !
