STORYMIRROR

bhagawati vyas

Abstract

4  

bhagawati vyas

Abstract

पुरुष

पुरुष

1 min
364

तन, बल, बुद्धि, विवेक मिले जो,

तभी पुरुष का सृजन हुआ !


तन कठोर है, मन कठोर है,

मदमाता पौरुष गहरा !

पूर्ण रहा परिपूर्ण बने तब,

मेल शक्ति से हो ठहरा !

मर्यादित हो इच्छाओं का,

जब तब ही तो दमन हुआ !


अर्जन करना प्रथम लक्ष्य है,

पोषण जिम्मेदारी है !

ज्ञानार्जन है संग पराक्रम,

तगड़ी हिस्सेदारी है !

अर्जित करना मान जानता,

धर्म, कर्म को नमन हुआ !


कर्म सदा ही पूजा इसने,

रेख हाथ की बदली है !

जाने कैसे भाग्य सँवरता,

दशा, दिशाएं बदली है !

दानी बनकर हाथ बढ़ाए,

कुविचारों का शमन हुआ !


अंधकार से सदा लड़ा है,

पाने को यह उजियारा !

मन के भी तम को मेटा है,

जगमग है अंतस सारा !

पूर्णात्मा जाना है निज को,

तभी दशानन दहन हुआ !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract