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bhagawati vyas

Romance

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bhagawati vyas

Romance

पलकों के पंखों से Palkon ke pankhon se udkar

पलकों के पंखों से Palkon ke pankhon se udkar

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 - गीत
पलकों के पंखों से उड़कर ,
यादों ने ली अँगड़ाई ।
सम्मोहक छवि तेरी ऐसी ,
 सदा लगी है सुखदाई ।।

 सजधज हो या रही सादगी ,
 रूप लगा बस न्यारा है ।
नैना चुप से चित्र खींचते ,
 मैंने जो मन हारा है ।।
स्वागत में पल दिखे ठहरते ,
 ऋतु ने की है अगुआई ।।
पलकों के पंखों से उड़कर ,
 यादों ने ली अँगड़ाई ।।

 अधर तुम्हारे मौन तोड़ते ,
 करते रहते मनमानी ।
भेद सभी मन के बतलाते ,
 नीयत लगती पहचानी ।
लाज निगोड़ी पास न फटके ,
 ऐसी जो है इतराई ।।
पलकों के पंखों से उड़कर ,
 यादों ने ली अँगड़ाई ।।

 अगर शरारत की तुम सोचो ,
 अँखियों ने सच बोला है ।
पल रंगीन हुए है सारे ,
 रंग प्रीत का घोला है ।
उमर फुदकती , लगे हिरनिया ,
 छाई है जो तरुणाई ।।
पलकों के पंखों से उड़कर ,
 यादों ने ली अँगड़ाई ।।

 चाहत को मत कभी तौलना ,
 यही गुजारिश है तुमसे ।
खुशी भले ही हाथ न आए ,
 लड़ लेंगे पगले गम से ।
तुम्हें भूलना बड़ा कठिन है ,
 साथ भले हो तन्हाई ।।
पलकों के पंखों से उड़कर ,
 यादों ने ली अँगड़ाई ।।

 स्वरचित / रचियता :
 बृज व्यास
 शाजापुर ( मध्यप्रदेश )


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