" हम किधर जाएंगें "
" हम किधर जाएंगें "


वक्त के संग हम भी गुज़र जाएंगे
क्या खबर है किसे हम किधर जाएंगे
श्वास है तो रही दौड़ती ज़िन्दगी
यह थमी छोड़ अपना सफ़र जाएंगे
साथ जाना वही है भला कुछ किया
है यहाँ का यहीं छोड़कर जाएंगे
भोग हो योग हो ध्येय अपना सही
साधना कुछ हुई तो निखर जाएंगे
भेंट हमको समय दे रहा हर घड़ी
हो पलों का नियोजन सँवर जाएंगे
कर्म अच्छे किये हों रहें तोलते
गंध बन कर उड़े तो बिखर जाएंगे
मन रमाते रहे राम में ही अगर
हम पवन से "बिरज" छू शिखर जाएंगे